Thursday, June 4, 2020

कोरोना काल की कविताएं
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●भूखे पेट
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भूखे पेट
पैदल चलने की प्रतियोगिता
की जाती यदि किसी ओलंपिक में
तो भारत आता
प्रथम स्थान पर
जीत लेता
भूख का गोल्ड मेडल
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 ●प्रकृति
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प्रकृति प्रसन्न है
 इस लॉक डाउन में

 घरों की छत पर
आकर बैठ गए हैं मोर
नदी का पानी हो गया है
कांच के जैसा पारदर्शी
पेड़ों के पत्ते
इस तेज गर्मी में भी
 बने हुए हैं हरे भरे

पोखर पर चिड़िया
कर रही है अपनी चोंच साफ
 निश्चिंतता के साथ

घर के भीतर बैठा है पूरा परिवार
मौज मस्ती और आनंद के साथ

निखर आया है स्वरूप
 पूरी पृथ्वी का
 क्योंकि प्रदूषण की सारी धाराएं
 बंद हो गई हैं

और इंसान को
 समझ में आ रहा है
 प्रकृति के साथ चलना
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●जड़ों की और
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 निकल पड़े हैं सब लोग
अपनी अपनी जड़ों की ओर
समेट कर छोटा सा कुछ सामान

नहीं हो रही है उनके लिए
बसों की व्यवस्था

बिना किसी प्रतिकार के
आगे बढ़ते चले जा रहे हैं
कदम दर कदम
एक एक किलोमीटर को लाँघते हुए

 जाना है कितने किलोमीटर
नहीं जानते हैं उठते हुए कदम
 लेकिन चल पड़े हैं
बिना किसी दुख को मनाए

जाना चाहते हैं सब
अपनी जड़ों में
जहां की ममतामयी मिट्टी
पुकार रही है उन्हें

अब शायद  लौट कर नहीं आएंगे
सीमेंट के इस जंगल में
जहां  बोथरी है संवेदना
 जहां अब नहीं बचा
 उनके लिए कुछ भी

 लौट रहे हैं
झुंड के झुंड मानव समूह
 बिना किसी प्रतिकार के
अपनी जड़ों की ओर।
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■ आर 451, महालक्ष्मी नगर,
इंदौर 452010


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